एक जमाने की बात है, राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके में चित्तौड़गढ़ नामक एक शानदार किला हुआ करता था। इस किले की रानी थीं रानी रेवा, जिन्हें उनकी खूबसूरती और बुद्धिमानी के लिए जाना जाता था। उनके पति, महाराजा रतन सिंह, एक धर्मात्मा और न्यायप्रिय राजा थे। उनकी प्रजा उनसे बहुत प्यार करती थी।
एक दिन, एक पड़ोसी राज्य के क्रूर राजा, दानिशमंद ने चित्तौड़गढ़ पर हमला करने की योजना बनाई। उसकी सेना काफी बड़ी और ताकतवर थी, जबकि चित्तौड़ की सेना छोटी थी। रानी रेवा को पता चला कि राजा दानिशमंद उनकी खूबसूरती से मोहित है और उनसे शादी करना चाहता है। उन्होंने यह भी सुना कि अगर रानी दानिशमंद से शादी करने से इनकार कर देती हैं, तो वह पूरे चित्तौड़गढ़ को तबाह कर देगा।
रानी रेवा ने अपने पति और सलाहकारों के साथ सलाह-मशवरा किया। उन्होंने फैसला किया कि युद्ध में चित्तौड़ की हार निश्चित है। इसलिए, उन्होंने एक चालाक योजना बनाई। रानी रेवा ने राजा दानिशमंद को एक संदेश भेजा, जिसमें उन्होंने शादी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, लेकिन एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि वह केवल तभी शादी करेंगी जब राजा दानिशमंद उनके साथ हथियारों के बिना महल के बाहर मिलेंगे।
दानिशमंद, रानी की खूबसूरती के लालच में, इस शर्त से सहमत हो गया। उसने सोचा कि रानी के बिना कोई भी सैनिक महल से बाहर नहीं आएगा। नियत समय पर, रानी रेवा अपने सैकड़ों सहेलियों के साथ, जो सभी पुरुषों की तरह तैयार थीं, महल से बाहर निकलीं। उन्होंने तलवारें और ढालें ली हुई थीं।
दानिशमंद और उसकी सेना को देखकर चौंक गए। रानी रेवा ने घोषणा की कि उन्होंने कभी हार नहीं मानी और चित्तौड़गढ़ कभी आत्मसमर्पण नहीं करेगा। उन्होंने और उनकी सहेलियों ने दानिशमंद की सेना पर वीरतापूर्वक हमला किया। दानिशमंद की सेना हतप्रभ रह गई और उन्हें बुरी तरह पराजित होना पड़ा।
इस तरह, रानी रेवा की चालाकी और बहादुरी ने चित्तौड़गढ़ को बचा लिया। उनकी कहानी आज भी राजस्थान में वीरता और बुद्धिमानी की कहानी के रूप में प्रचलित है।
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