एक बार की बात है, एक गाँव में मीना नाम की एक छोटी चूही रहती थी। मीना को खूब गाने का शौक था। वो कभी खेतों में फसल लहराते देखकर गाती, कभी नदी के बहते पानी की आवाज में अपना सुर मिलाती। पर मीना को हर किसी से ज्यादा मधुर धुन उस पेड़ पर चहकते कोयल की लगती थी।
हर सुबह मीना उस बड़े आम के पेड़ की छाया में बैठती और कोयल को सुनती। वो उसकी हर तर्ज को याद करने की कोशिश करती, मगर कभी भी ठीक से नहीं गा पाती। एक दिन गुस्से में मीना बड़बड़ा उठी, “मुझे तो इतना ही नहीं गाना आता! कोयल इतनी अच्छी क्यों गाती है और मैं क्यों नहीं?”
उसकी बड़बड़ाहट वायु में घुल गई और एक परी ने उसे सुन लिया। परी मीना के पास प्रकट हुई और धीमे स्वर में बोली, “छोटी मीना, गाना दिल से होता है, प्रतिस्पर्धा से नहीं। तुम कोयल की नकल करने की कोशिश मत करो, अपनी खुद की धुन तलाशो। तुम्हारे अंदर भी एक अनोखा गीत छिपा है, बस उसे बाहर लाने की जरूरत है।”
परी के शब्दों ने मीना को सोचने पर मजबूर कर दिया। अगले दिन वो फिर उसी पेड़ के नीचे बैठी, लेकिन इस बार कोयल की नकल करने की कोशिश नहीं की। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और हवा में बहते पत्तियों की सरसराहट, पंछियों की चहचाहट और बच्चों की हँसी को सुना। धीरे-धीरे उसके अंदर ही अंदर एक नया गीत जन्म लेने लगा।
जब मीना ने आँखें खोलीं, तो उसकी छोटी सी चोंच से एक ऐसा मधुर स्वर निकला जो पहले कभी किसी ने नहीं सुना था। उसकी आवाज में खेतों की खुशबू, नदी की ठंडक और आसमान की खुली नीलिमा बसी थी। वो गीत था उसकी अपनी कहानी, उसके जंगल, उसकी जिंदगी का गीत।
उस दिन से मीना जंगल की सबसे लोकप्रिय गायिका बन गई। किसी ने फिर उससे कोयल की नकल करने के लिए नहीं कहा, क्योंकि सबको उसी का अपना मीठा गाना सुनना अच्छा लगता था। मीना ने सीखा कि हर किसी के अंदर एक खास प्रतिभा छिपी होती है, जिसे खोजने के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और रचनात्मकता की जरूरत होती है।
तो छोटे मित्रों, आप मीना की कहानी से क्या सीखते हैं? हर कोई अनोखा है और उसकी अपनी खास प्रतिभा है। दूसरों की नकल करने की कोशिश मत करो, अपनी आवाज खोजो और उसे बुलंद करो। यही खुशहाली और सफलता का रास्ता है।
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