एक बार एक लोमड़ी बहुत भूखी थी। उसे कुछ खाने की तलाश थी, लेकिन उसे कुछ नहीं मिल रहा था। वह एक किसान के बाग में गई और एक अंगूर के पेड़ पर रसभरे अंगूर लटके देखे। लोमड़ी ने अंगूरों को देखा और सोचा, “अरे ये अंगूर कितने स्वादिष्ट लग रहे हैं! मुझे तो इन अंगूरों को खाकर ही मन भरेगा।”
लोमड़ी ने अंगूरों को खाने के लिए कई बार कोशिश की, लेकिन वह उन्हें नहीं छू पाई। अंगूर पेड़ पर बहुत ऊपर लटके हुए थे। लोमड़ी बहुत निराश हो गई। उसने सोचा, “अब तो मैं भूखी ही रह जाऊंगी।”
फिर लोमड़ी ने एक तरकीब सोची। उसने कहा, “अरे ये अंगूर तो बहुत खट्टे हैं। मुझे तो इन अंगूरों को खाने से अच्छा तो भुख ही रहना है।”
और इस तरह लोमड़ी ने अंगूरों को नहीं खाया और भूखी ही रह गई।
शिक्षा: कभी भी अपनी असफलता को दूसरों पर न मढ़ें। अपनी असफलता का कारण खुद खोजें और उसे दूर करने का प्रयास करें।
लोमड़ी और कौआ
एक बार एक लोमड़ी एक कौए को देखकर बहुत खुश हुई। उसे लगा कि वह कौए को अपना भोजन बना सकती है। लोमड़ी ने कौए को अपनी बातों में फंसाकर उसे एक पेड़ पर बैठने के लिए कहा। कौआ लोमड़ी की बातों में आ गया और पेड़ पर बैठ गया।
लोमड़ी कौए से बोली, “तेरे पास क्या है?”
कौआ बोला, “मेरे पास एक मोती है।”
लोमड़ी कौए से बोली, “तुम अपना मोती मुझे दिखाओ।”
कौआ ने लोमड़ी को अपना मोती दिखाया। लोमड़ी ने कौए से कहा, “तुम अपना मोती अपनी चोंच में रखकर दिखाओ। मैं तुम्हारे मोती की तारीफ करूंगी।”
कौआ लोमड़ी की बातों में आ गया और अपना मोती अपनी चोंच में रखकर दिखाने लगा। लोमड़ी ने मौका देखकर कौए का मोती उठा लिया और भाग गई।
कौआ को अपना मोती खो जाने का बहुत दुख हुआ। उसने लोमड़ी को गालियां दीं, लेकिन लोमड़ी तो भाग चुकी थी।
शिक्षा: दूसरों की बातों में आकर अपनी चीजें दूसरों को मत सौंपो।
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