एक जंगल में रहती थी, छोटी सी चिड़िया चंचल. चंचल बहुत ही तेज दिमाग की थी, लेकिन उसकी एक परेशानी थी. उसे दूर की चीजें धुंधली दिखाई देती थीं. पेड़ों से मीठे फल तो दूर ही रहें, उसे तो अपना घोंसला तक अच्छे से नहीं दिखता था.
दुखी होकर चंचल तालाब के किनारे बैठी थी, तभी उसे एक बुढ़िया कछुआ दिखी. कछुआ चश्मा लगाए हुए धीरे-धीरे चल रही थी. चंचल ने पूछा, “दादी माँ, ये क्या है आपके चेहरे पर?”
कछुआ ने बताया, “यह चश्मा है, बेटी. इससे दूर की चीजें साफ दिखती हैं.”
चंचल खुशी से उछल पड़ी, “मुझे भी चश्मा चाहिए! अब मैं दूर के फल देख पाऊंगी.”
कछुआ मुस्कुराई और बोली, “चश्मा हर किसी के काम नहीं आता. तुम्हारी ताकत तुम्हारी तेज नजर है. पेड़ों पर चढ़ना, आसमान में उड़ना, यही तुम्हारी खासियत है.”
चिंता करते हुए चंचल बोली, “पर दूर से फल कैसे देखूंगी?”
कछुआ ने कहा, “अपनी ताकत पर भरोसा रखो. उड़कर करीब जाओ और तब फल देखो. याद रखो, हर किसी चीज के लिए नकल नहीं करनी चाहिए.”
चंचल ने सोचा और माना. अगले दिन उसने थोड़ी दूर उड़ान भरी. पेड़ साफ दिखने लगा. फिर थोड़ा और ऊपर गई, तो मीठे आम का गुच्छा चमकने लगा. खुशी से चहचहाती हुई, चंचल ने स्वादिष्ट आम का मजा लिया.
सीख: अपनी खासियत पर भरोसा रखना और उसी का इस्तेमाल करना सबसे अच्छा है. दूसरों की नकल करने से फायदे से ज्यादा नुकसान हो सकता है.
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