एक समय की बात है, आयुध्या नगरी में भगवान राम के भक्त एक साधु रहता था। उसका नाम था संतोष। संतोष भगवान राम के प्रेमी भक्त थे और वह हमेशा उनकी पूजा-अर्चना में लगे रहते थे।
एक दिन, संतोष ने अपने मन में एक इच्छा पैदा की – वह चाहते थे कि भगवान राम उनके घर आकर खाना खाएंगे। संतोष ने इस इच्छा को अपने मन में छुपाकर भगवान की पूजा करना शुरू किया।
धीरे-धीरे संतोष की पूजा और भक्ति में इजाफा हुआ, और एक दिन भगवान राम ने अपने दर्शन करने का निश्चय किया। भगवान राम ने आदेश दिया कि वह अगले हफ्ते संतोष के घर जाएंगे और उनके साथ भोजन करेंगे।
संतोष को यह सुनकर अत्यंत खुशी हुई और उन्होंने अपने घर को सजाने-सवराने में लगा दिया। उन्होंने भगवान के आगमन के लिए एक शानदार भोजन की तैयारी की और सभी भक्तों को भी बुलाया।
आखिरकार, भगवान राम ने आयुध्या नगर की सफलता के साथ संतोष के घर आकर उनके साथ भोजन किया। संतोष ने भगवान की सेवा में पूरा दिल लगा दिया और उनके आगमन को अद्भुत बना दिया।
भगवान राम ने संतोष की भक्ति और सेवा को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने उससे कुछ मांगने का अवसर दिया।
संतोष ने कहा, “प्रभु, मुझे आपका दर्शन करने का अवसर मिला है, अब मुझे कुछ और नहीं चाहिए। आपकी कृपा और आशीर्वाद मेरे लिए काफी हैं।”
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि भगवान के प्रेमी भक्त की प्रार्थना, भक्ति, और सेवा से ही सच्चा सुख प्राप्त होता है। और संतोष की निष्ठा ने उसे भगवान के साकार रूप में आने का अद्भुत अनुभव कराया।
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