चमनलाल, एक ईमानदार लकड़हारा, जंगल से लकड़ी काटकर बेचता था। उसकी ईमानदारी की दूर-दूर तक धूम थी। एक दिन, जंगल में लकड़ी काटते समय उसे एक पुरानी डिब्बी मिली। डिब्बी खोलकर देखता है तो वह आभासित हो उठा। डिब्बी सोने के सिक्कों से भरी थी। चमनलाल को लगा मानो उसकी किस्मत खुल गई हो। इतना सोना देखकर उसका मन लालच से भर गया।
वह सोचने लगा, “अगर मैं इस सोने को किसी को न बताऊं तो मेरी गरीबी दूर हो जाएगी। गाँव में सबसे बड़ा घर बनवाऊंगा, खेत-खलिहान खरीदूंगा। गाँव वालों को क्या पता चलेगा?”
लेकिन, फिर उसे अपनी पत्नी का, मीरा का, चेहरा याद आया। मीरा भी उसी ईमानदारी के साथ जीवन जीती थी, जिसके साथ चमनलाल। मीरा की ईमानदारी की परीक्षा भी कई बार हो चुकी थी, और हर बार वह उसमें सफल रही थी।
चमनलाल को लगा मानो मीरा उसे देख रही है। उसका मन छटपटा उठा। वह सोचने लगा, “ये सोना मेरा नहीं है। इसे चुराना पाप होगा। मीरा को पता चलेगा तो वह क्या सोचेगी?”
थोड़ी देर सोचने के बाद, चमनलाल ने फैसला किया। उसने सोने की डिब्बी को उठाया और गाँव के राजा के पास ले गया। राजा को डिब्बी दिखाकर उसने बताया कि उसे जंगल में मिली है। राजा चमनलाल की ईमानदारी से बहुत प्रभावित हुआ। उसने चमनलाल को ईनाम देने की कोशिश की, लेकिन चमनलाल ने मना कर दिया।
कुछ दिनों बाद, जंगल से सोना खोने वाला व्यापारी गाँव आया। राजा ने उसे चमनलाल के पास भेजा। व्यापारी ने चमनलाल को धन्यवाद दिया और उसे ईमानदारी का सच्चा धनी बताया। उसने चमनलाल को इतना धन दिया कि उसका जीवन आराम से कटने लगा।
इस घटना के बाद, चमनलाल की ईमानदारी की कहानी पूरे देश में फैल गई। लोग उसे आदर्श मानने लगे। चमनलाल को महसूस हुआ कि ईमानदारी का रास्ता ही असली खुशी का रास्ता है।
सीख: ईमान सबसे बड़ा धन है। लालच में आकर कभी गलत रास्ते पर मत चलो। ईमानदारी का रास्ता ही सफलता और सम्मान का रास्ता है।
Read More:-