प्राचीन काल में, करवा नाम की एक सुहागिन थी। उसका पति साहूकार का बेटा था। एक दिन, वह अपने पति के साथ जंगल में घूमने गई। वहाँ, उसे एक सांप ने डस लिया और वह मर गया। करवा बहुत दुखी हुई। उसने यमराज से प्रार्थना की कि वह उसके पति को वापस लाए।
यमराज करवा की भक्ति से प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि वह उसके पति को वापस लाएंगे, लेकिन एक शर्त पर। करवा को हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को व्रत रखना होगा। करवा ने सहमति व्यक्त की।
करवा ने अगले साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को व्रत रखा। उसने पूरे दिन निर्जला व्रत रखा और रात में चंद्रमा को देखकर व्रत खोला। उसके पति जीवित हो गए।
तब से, सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत रखती हैं।
करवा चौथ की कथा का महत्व
करवा चौथ की कथा का महत्व निम्नलिखित है:
- यह कथा पति-पत्नी के बीच प्रेम और बंधन का प्रतीक है।
- यह कथा पत्नी के त्याग और समर्पण का प्रतीक है।
- यह कथा यमराज के प्रति भक्ति का प्रतीक है।
करवा चौथ का व्रत
करवा चौथ का व्रत एक कठिन व्रत है। सुहागिन महिलाएं इस दिन पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। वे सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करती हैं और फिर व्रत शुरू करती हैं। वे दिन भर कुछ भी नहीं खाती-पीती हैं। रात में, वे चंद्रमा को देखकर व्रत खोलती हैं।
करवा चौथ का व्रत रखने की विधि
करवा चौथ का व्रत रखने की विधि निम्नलिखित है:
- सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें।
- पूरे दिन निर्जला व्रत रखें।
- शाम को सरगी खाएं।
- रात में चंद्रमा को देखकर व्रत खोलें।
करवा चौथ की पूजा
करवा चौथ की पूजा शाम को की जाती है। सुहागिन महिलाएं करवा माता और भगवान शिव की पूजा करती हैं। वे करवा माता को मिट्टी का दीया, धूप, दीप, फल, फूल, मिठाई आदि चढ़ाती हैं।
करवा चौथ के त्योहार का महत्व
करवा चौथ का त्योहार पति-पत्नी के बीच प्रेम और बंधन का प्रतीक है। यह त्योहार पत्नी के त्याग और समर्पण का भी प्रतीक है।
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