करवा चौथ की दो प्रमुख कहानियां प्रचलित हैं:
पहली कहानी:
एक साहूकार के सात बेटे और एक लाडली बेटी करवा थी। भाईयों का अपनी बहन पर बहुत प्यार था. एक बार जब करवा मायके आई हुई थी, तो उस दिन करवा चौथ का व्रत था. शाम होते ही भूख से व्याकुल हो गई. भाईयों ने देखा तो उन्होंने उसे खाना खाने का आग्रह किया.
चूंकि करवा चौथ का व्रत चांद निकलने के बाद ही तोड़ा जाता है, इसलिए करवा ने मना कर दिया. परंतु भाईयों को उसकी हालत देखी नहीं गई. तो उन्होंने एक चाला चलाया. उन्होंने एक दीपक को पेड़ के ऊपर उठाकर दिखाया और बताया कि चांद निकल आया है.
भाईयों की बातों में आकर करवा ने व्रत तोड़ लिया. लेकिन इसके तुरंत बाद उसे अपने पति के मृत्यु का समाचार मिला. सच्चाई जानने पर पता चला कि व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता नाराज हो गए थे.
इसके बाद गहरी आस्था के साथ उसने पूरे एक साल तक अपने पति के पार्थिव शरीर के पास रहकर, उनकी पुनर्जीवन की कामना की. उसकी निष्ठा से देवी पार्वती और सप्तर्षियों ने प्रसन्न होकर उसके पति को पुनर्जीवन प्रदान किया.
दूसरी कहानी:
दूसरी कथा में, भगवान गणेश पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे. उनके पास दूध और चावल की दो छोटी कटोरियां थीं. उन्होंने कई लोगों से खीर बनाने का अनुरोध किया लेकिन असफल रहे. अंत में एक बुढ़िया माई ने उनकी विनती स्वीकार कर ली.
बुढ़िया माई के पास भी थोड़ा ही सामान था, इसलिए उन्होंने गणेश जी से बर्तन मांगा. गणेश जी ने अपना बड़ा बर्तन दिया और उसमें से अन्न निकालकर खीर बनाई गई.
बुढ़िया माई ने गणेश जी को बताया कि संकल्प के साथ थोड़े से साधनों से भी बड़ा कार्य किया जा सकता है. इस पर गणेश जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि जो भी महिला सच्चे मन से करवा चौथ का व्रत रखेगी, उसके पति की लंबी आयु होगी.
ये दोनों ही कहानियां करवा चौथ के महत्व को दर्शाती हैं. व्रत रखने वाली महिलाएं पति की दीर्घायु और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं.
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