एक समय में अयोध्या में राजा हरिश्चंद्र राज्य करते थे। वे अत्यंत सत्यवादी और दानवीर थे। वे अपने वचन का पालन करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते थे।
एक दिन राजा हरिश्चंद्र ने सपने में देखा कि उन्होंने महर्षि विश्वामित्र को अपना सारा राज्य दान में दे दिया है। सुबह उठने पर उन्होंने सपने को याद किया और महर्षि विश्वामित्र को बुलाकर कहा, “महर्षि, मैंने सपने में आपको अपना सारा राज्य दान में दे दिया है। मैं अपना वचन निभाना चाहता हूं।”
महर्षि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र को आशीर्वाद दिया और कहा, “राजन, आपका वचन निभाना ही आपका धर्म है। मैं आपका राज्य स्वीकार करता हूं।”
राजा हरिश्चंद्र ने महर्षि विश्वामित्र को अपना राज्य दान में दे दिया। राज्य दान करने के बाद भी राजा हरिश्चंद्र का धर्मपरायणता नहीं बदली। वे अपने वचन का पालन करने के लिए अपने परिवार को भी छोड़ने को तैयार थे।
एक दिन महर्षि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र से दक्षिणा मांगी। राजा हरिश्चंद्र के पास दक्षिणा देने के लिए कुछ भी नहीं था। वे महर्षि विश्वामित्र से माफी मांगने लगे।
महर्षि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र को कहा, “राजन, आपने अपना राज्य तो मुझे दे दिया, लेकिन दक्षिणा अभी तक नहीं दी है। आप अपना वचन कैसे निभाएंगे?”
राजा हरिश्चंद्र ने महर्षि विश्वामित्र से कहा, “महर्षि, मेरे पास दक्षिणा देने के लिए कुछ भी नहीं है। मैं आपको अपने पुत्र रोहित को दक्षिणा में दे दूंगा।”
महर्षि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र की बात मान ली। राजा हरिश्चंद्र ने अपने पुत्र रोहित को महर्षि विश्वामित्र को दक्षिणा में दे दिया।
महर्षि विश्वामित्र ने रोहित को एक वन में छोड़ दिया। रोहित जंगल में भटकते हुए एक ऋषि के आश्रम में गया। ऋषि ने रोहित को अपने आश्रम में रख लिया और उसका पालन-पोषण किया।
राजा हरिश्चंद्र और उनकी पत्नी तारामती रोहित को खोने के बाद बहुत दुखी हुए। वे महर्षि विश्वामित्र से रोहित को वापस लेने के लिए भीख मांगने लगे।
महर्षि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र और तारामती को रोहित को वापस देने से मना कर दिया। उन्होंने कहा, “राजन, आपने अपना वचन निभाया है। अब मैं अपना वचन निभाऊंगा।”
महर्षि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र और तारामती को अपने आश्रम में काम करने के लिए भेज दिया। राजा हरिश्चंद्र और तारामती ने आश्रम में कई कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने धर्म का पालन नहीं छोड़ा।
एक दिन रोहित का एक सर्प से सामना हुआ। सर्प ने रोहित को डस लिया। रोहित की मृत्यु हो गई।
रोहित की मृत्यु का समाचार सुनकर राजा हरिश्चंद्र और तारामती बहुत दुखी हुए। वे रोहित का शव लेकर अयोध्या लौट आए।
अयोध्या में राजा हरिश्चंद्र के वापस आने की खबर सुनकर सभी लोग बहुत खुश हुए। राजा हरिश्चंद्र ने अपने राज्य पर फिर से राज करना शुरू किया।
राजा हरिश्चंद्र की सत्यवादिता और धर्मपरायणता की चर्चा दूर-दूर तक फैल गई। लोग उन्हें “सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र” के नाम से पुकारने लगे।
राजा हरिश्चंद्र की कहानी हमें सिखाती है कि हमें हमेशा सत्य बोलना चाहिए और अपने वचन का पालन करना चाहिए। सत्यवादिता और धर्मपरायणता ही हमें जीवन में सफलता दिला सकती है।
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