शिव भगवान की तीसरी आंख का रहस्य | Mystery of Lord Shiva’s third eye Kahani
आज हम आपको उनके बारे मैं बताने वाले है जिनका नाम मात्र लेने से दिल को और दुःख में पड़े शरीर को आराम मिलता है।
भगवन शिव जो हमारे दिल के बहुत करीब है। और एक मात्र ऐसे भगवन है जिन्हे किसी भी चीज़ का मोह नहीं है। सारी मोह माया से परे संसार को बसा के, वह लीन रहते है अपनी साधना मैं। और जग को बहुत सी ऐसी चीज़ो का गायन देते है। अपने तप से।
उनकी वैस भूसा से लेकर उनके हर एक सरीर की अंग की कहानी है। जटा धारी मेरे महादेव हमेशा इतने शांत लगते है। लेकिन जब पाप अपनी सीमा को लांग देता है। तब उनकी तीसरी आँख का प्रकोप इतना है। की पूरी सृष्टि को तहस नहस कर सकता है।
महादेव शिव की तीसरी आंख का रहस्य बहुत ही गहरा और अद्भुत है। शिव की तीसरी आंख को ‘त्रिनेत्र’ कहा जाता है और यह हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।
त्रिनेत्र का रहस्य शिव के सम्बन्ध में अनेक कथाओं और पुराणों में उल्लेखित है। इसे वे अपनी अनंत शक्ति और ज्ञान की प्रतीक के रूप में जाना जाता है।
कई कथाएँ बताती हैं कि जब भगवान शिव ने समुद्र मथन किया था, तो उनकी तीसरी आंख व्यक्ति के भले-बुरे कार्यों को देख सकती थी। यह उन्हें ज्ञान की प्राप्ति में सहायता करती थी और उन्हें संसार के रहस्यों को समझने में मदद करती थी।
वेदों में भी इस त्रिनेत्र को महादेव की उपासना में महत्त्वपूर्ण माना गया है। यह आंख उनकी अनंत शक्ति को प्रकट करती है और उनकी सर्वशक्तिमान स्वरूप को दर्शाती है।
शिव की तीसरी आंख का रहस्य हमें यह सिखाता है कि उन्होंने ज्ञान और सत्य की प्राप्ति के लिए एक विशेष दृष्टि दी है, जो हमें अन्तरात्मा की उच्चता तक ले जा सकती है। इसका मतलब है कि हमें भले-बुरे कार्यों को समझने और सत्य के मार्ग पर चलने के लिए सदैव सत्य और ज्ञान का सहारा लेना चाहिए।
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